एंबेसी के अधिकारी ऐशो आराम की सुविधाओ के साथ रहते है इन्हे घर से लेकर बुलेट प्रूफ गाड़ी तक दी जाती है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की दिल्ली में स्थित अमेरिकी एंबेसी की 4 महिला अधिकारियों ने सरकार द्वारा मिली बुलेट प्रूफ गाड़ियों को त्याग ऑटो चलाने का फैसला किया। इन महिलाओं का कहना है की ऑटो चलाना मज्जेदार है।
बुलेट प्रूफ गाड़ी छोड़ ऑटो को किया पसंद
एनएल मेसन ने न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत में कहा, “मैंने कभी भी क्लच वाली गाड़ियां नहीं चलाईं। मैं हमेशा ऑटोमैटिक कार ही चलाती हूं, लेकिन भारत आकर ऑटो चलाना एक नया एक्सपीरिएंस था। जब में पाकिस्तान में थी तब मैं बड़ी और शानदार बुलेटप्रूफ गाड़ी में घूमती थी।
उसी से ऑफिस जाती थी, लेकिन जब मैं बाहर ऑटो देखती थी तो लगता था कि एक बार तो इसे चलाना है। इसलिए जैसे ही भारत आई तो एक ऑटो खरीद लिया। मेरे साथ रूथ, शरीन और जेनिफर ने भी ऑटो खरीदे।” मेसन ने कहा,
“मुझे मेरी मां से प्रेरणा मिली। वो हमेशा कुछ नया करती रहती थीं। उन्होंने मुझे हमेशा चांस लेना सिखाया। मेरी बेटी भी ऑटो चलाना सीख रही है। मैंने ऑटो को पर्सनलाइज किया है। इसमें ब्लूटूथ डिवाइस लगा है। इसमें टाइगर प्रिंट वाले पर्दे भी लगे हैं।”
भारतवंशी शरीन के पास है पिंक ऑटो
अमेरिकी डिप्लोमैट शरीन जे किटरमैन जिनका जन्म कर्नाटक में हुआ लेकिन बाद में वो अमेरिका में बस गई और अब उनके पास यूएस सिटिजनशिप है। उनके पास पिंक कलर की ऑटो है उन्होंने इस ऑटो के रिव्यू मिरर में अमेरिकी और भारतीय झंडे लगा रखा है। उन्होंने कहा,
“मुझे एक मैक्सिकन एंबेसडर मेल्बा प्रिआ से यह प्रेरणा मिली। 10 साल पहले उनके पास एक सफेद रंग का ऑटो था। उनका ड्राइवर भी था। जब मैं भारत आई तो देखा मेसन के पास ऑटो है। तभी मैंने भी एक ऑटो खरीद लिया।”
मार्केट भी ऑटो से जाती है अमेरिकी अधिकारी
रुथ होल्म्बर्ग अमेरिकी अधिकारी ने कहा, “मुझे ऑटो चलाना बहुत पसंद है। मैं मार्केट भी इसी से जाती हूं। यहां लोगों से मिलती हूं। महिलाएं मुझे देखकर मोटिवेट भी होती हैं। मेरे लिए डिप्लोमेसी हाई लेवल पर नहीं है।
डिप्लोमेसी का मतलब है लोगों से मुलाकात करना, उन्हें जानना और उनके साथ एक रिश्ता कायम करना। ये सब मैं ऑटो चलाते हुए कर सकती हूं। मैं हर दिन लोगों से मुलाकात करती हूं। ये डिप्लोमेसी के लिए जरूरी है।”
ऑटो चलाना मुश्किल था लेकिन सीख लिया
जेनिफर ने अपना ऑटो चलाने अनुभव बताते हुए कहा, ‘मैंने लोगों की अच्छाई देखी है। कई बार लोगों को जानने के लिए आपको आउट ऑफ द बॉक्स सोचना पड़ता है। जब मैं दिल्ली आई तो मैं मेसन के साथ ऑटो में जाती थी। बाद में मैंने अपना ऑटो खरीद लिया। इसे चलाना मुश्किल था, लेकिन मैंने सीखा। सीखना उतना मुश्किल नहीं होता पर सबसे ज्यादा मुश्किल आसपास चल रही गाड़ियों को ध्यान में रखकर ड्राइविंग करने में होती है। यहां कोई-भी कहीं से भी अचानक आ जाता है। ये कभी-कभी डरावना हो जाता है, लेकिन इसमें काफी मजा आता है।‘