Delhi News: तीन हज़ार से ज्यादा बच्चों को संवार चुकी है ललिता मां, कोठों पर जाकर करो मदद 

यहां देह व्यापार होता है। कोठों पर पर्दे की दीवारों के बीच आपको बचपन का एक कोना भी नजर आएगा जहां एक समय में 85 से ज्यादा बच्चे एक साथ रहने को मजबूर हैं।

पेशेवर मजबूरियों के बीच यहां की महिलाएं अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा और बेहतर परवरिश का सपना देखती हैं। इसमें कर्नाटक की ललिता मां उनकी मदद कर रही हैं। जिन्होंने करीब 30 साल पहले इन बच्चों को उनका हक देना शुरू किया था। ललिता मां की इस पहल से अब तक तीन हजार से अधिक बच्चों का जीवन समृद्ध हुआ है। बच्चों के पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा, संस्कार, विवाह आदि सभी उत्तरदायित्वों को बखूबी निभा रही है। यहां के बच्चे दिल्ली विश्वविद्यालय समेत अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़ रहे हैं और यहां से कई बेटे-बेटियां अपनी मां को ले गए हैं।

 

जगह-जगह कोठों पर जाकर हिम्मत बांधी

बता दें, ललिता मां जिन्होंने 65 साल की उम्र में भी खुद को थकने नहीं दिया। पहले वह कर्नाटक की एक संस्था के जरिए महिलाओं और बच्चों से जुड़े काम करती थीं। वह 1988 में एक बार दिल्ली आई थी। वह बताती है कि उसी समय एक डॉक्टर रेड लाइट एरिया में सेक्स वर्कर्स का ऑपरेशन करना चाहता था। मुझे जीबी रोड भेजा गया, जहां एक आदमी बच्चों को पीट रहा था, तभी एक सेक्स वर्कर आई और मेरे सामने हाथ जोड़कर रोने लगी और अपने बच्चे की जान बचाने की गुहार लगाने लगी। उस दिन मैंने एक संकल्प लिया था जो आज भी हजारों बच्चों के स्नेह से मुझे बांधे हुए है।

 

समाज कल्याण करा

बताते चले कि शुरू में तीन साल तक वह वेश्यालय से वेश्यालय गई, सेक्स वर्कर्स से बात की, उनके सामने अपने बच्चों की देखभाल की। वे मेरे साथ जुड़ने लगे। 1991 में बच्चों के लिए एक सुरक्षित, संरक्षित स्थान के रूप में पार्टिसिपेटरी इंटीग्रेटेड सेंटर्स के लिए सोसायटी के रूप में एक करीबी बंधन का गठन किया गया था मैं मानती हूं कि इन बच्चों का क्या दोष है। उन्हें अपनी लाइफ मिलनी चाहिए। बच्चों को अपने पास रखने और उनकी रक्षा करने पर ललिता कहती हैं कि उस समय समाज कल्याण था इसलिए उन्होंने उनके सहयोग से शुरुआत की। अब इस मिशन को मानकों के तहत पूरा कर रहे हैं। वह बच्चों का बाल कल्याण समिति में पंजीकरण कराकर ही अपने पास रखती हैं।