Delhi-Doon Expressway: दिल्ली से देहरादून का सफ़र करने के लिए अब दो टनल उपलब्ध, डाटकाली इलाके में बनी नई सुरंग

देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेस-वे के अंतर्गत डाटकाली इलाके में तीसरी टनल का काम पूरा हो चुका है। आगामी दिनों में देहरादून से सहारनपुर और दिल्ली जाने के लिए दो अलग-अलग सुरंगों का इस्तेमाल किया जाएगा, वहीं सबसे पुरानी पहली सुरंग का इस्तेमाल डाटा काली मंदिर जाने के लिए किया जाएगा। देहरादून में एक्सप्रेस-वे आशारोड़ी इलाके से शुरू होता है। इससे करीब साढ़े तीन किमी आगे चलने के बाद दिल्ली से देहरादून आने वाले ट्रैफिक के लिए नई टनल तैयार की गई है। नई टनल को तीन लेन में बनाया गया है। इसकी कुल लंबाई 340 मीटर है, जबकि चौड़ाई 11 मीटर है। ऊंचाई की बात करें तो इसे सात मीटर रखा गया है। नई टनल का इस्तेमाल दिल्ली से देहरादून की ओर आने वाले ट्रैफिक के लिए किया जाएगा। बाहर से देखने पर यह सुरंग घोड़े की टांग में बंधी नाल की तरह दिखाई देती है।

 

नई सुरंग बनकर तैयार

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, नई टनल के बगल में पुरानी टनल बनाई गई है, जिससे होकर वर्तमान में देहरादून-दिल्ली ट्रैफिक गुजरता है। इस टनल को साल 2018 में रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया था। इस टनल की लंबाई भी करीब 340 मीटर है, जबकि चौड़ाई सात मीटर और ऊंचाई करीब साढ़े पांच मीटर है। थोड़े समय बाद जब दिल्ली से आने वाले ट्रैफिक को नई टनल की तरफ डायवर्ट किया जाएगा तो इस टनल का इस्तेमाल देहरादून से दिल्ली की ओर जाने वाले ट्रैफिक के उपयोग में किया जाएगा।

 

सुरंगों को उत्तराखंड और यूपी के हिस्सों में आधे हिस्से में बांटा गया है

बता दे कि डाट काली क्षेत्र में मौजूद तीन सुरंगों का दिलचस्प पहलू यह है कि ये तीन सुरंगें आधी उत्तराखंड में और आधी उत्तर प्रदेश में हैं। दोनों राज्यों की सीमा रेखा सुरंगों से होकर गुजरती है।

 

पहली सुरंग 200 साल पहले डाट काली इलाके में बनी थी

गौरतलब है कि डाट काली क्षेत्र में दो नई सुरंगों के निर्माण के बाद भी पुरानी और पहली सुरंग का अस्तित्व और महत्व मौजद रहेगा। देहरादून की ओर से डाट काली मंदिर जाने के लिए पुरानी सुरंग का उपयोग किया जाएगा। डाट काली मंदिर की पहली सुरंग का निर्माण वर्ष 1821-23 के बीच किया गया था। तब इसका निर्माण देहरादून एफजे शोर के तत्कालीन सहायक अधीक्षक ने करवाया था। उस समय इस सुरंग का निर्माण सहारनपुर जिले को राजपुर, मसूरी से जोड़ने के लिए किया गया था। आज दो सौ साल बाद भी सुरंग अच्छी स्थिति में है और आने वाले समय में भी रहेगी।