इस आदमी का जन्म पानीपत, हरियाणा में हुआ था, तब हरियाणा पंजाब का हिस्सा हुआ करता था। इस व्यक्ति ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। स्वामी श्रद्धानंद ने महात्मा गांधी से लेकर लाला लाजपत राय तक के साथ मिलकर काम किया। पंजाब का प्रांतीय चुनाव जीता। फिर यह व्यक्ति दिल्ली पहुंचा। राजधानी दिल्ली की राजनीति में जबरदस्त पहचान बनाई। ताजनगरी दिल्ली से चुनाव भी जीते। आजादी के बाद इस शख्स ने दिल्ली के लिए अपनी खुद की विधानसभा की मांग बहुत तगड़े तरीके से उठाई। इस मुद्दे पर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर से भी मतभेद थे। डॉ. अंबेडकर दिल्ली को विशेष दर्जा देने का समर्थन कर रहे थे। दिल्ली को आखिरकार अपनी विधानसभा मिल गई। ‘राजनीति के धुरंधर’ की दूसरी कड़ी में हम बात कर रहे हैं स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु गुप्ता की।
जब शपथ ग्रहण होने वाला था
बता दें कि 1951 में राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। कांग्रेस ने 48 में से 46 सीटों पर जीत हासिल की। उस समय देशबंधु गुप्ता की पहचान दिल्ली में एक मजबूत नेता के रूप में थी। तय हुआ कि दिल्ली का पहला सीएम उन्हें ही बनाया जाएगा। अंततः उनके नाम पर दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री के रूप में मुहर लगा दी गई। उनका शपथ ग्रहण बिल्कुल तय था परंतु होनी को कुछ और ही मंजूर था। 21 नवंबर 1951 को विमान दुर्घटना में देशबंधु गुप्ता की मृत्यु हो गई। इसके बाद जवाहरलाल नेहरू ने सीएम पद के लिए चौधरी ब्रह्म प्रकाश के नाम का प्रस्ताव रखा।
दिल्ली हुई थी वीरान
आपको बताते चले कि जब देशबंधु गुप्ता की कोलकाता जाते समय एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई। उनके निधन के बाद दिल्ली कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था। एक तरफ कांग्रेस सरकार बनाने की तैयारी कर रही थी। वहीं, सीएम पद के अपने प्रमुख दावेदार का जाना पार्टी के लिए असमय झटका था। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि देशबंधु गुप्त की मृत्यु पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि ‘आज दिल्ली वीरान हो गई है।’ इसका मतलब था कि दिल्ली ने आज अपनी आत्मा खो दी।