राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली-एनसीआर और उत्तराखंड समेत उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में एक सप्ताह के अंदर में दूसरी बार भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं। हाल के कुछ दिनों में दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में भूकंप के तेज़ झटके आए हैं। ताजनगरी दिल्ली के अलावा यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बिहार, हरियाणा और मध्य प्रदेश में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं। न्यू ईयर के उपलक्ष्य के जश्न में उस वक्त खौफ का माहौल था जब अचानक दिल्ली और उसके आसपास की धरती कांप उठी थी। इस साल जनवरी के पहले हफ्ते में दिल्ली एनसीआर में दो बार भूकंप के झटके आए हैं। कुछ महीने पहले नवंबर में ही 2 ऐसे झटके आए थे, जिनमें से एक बेहद गंभीर श्रेणी में था।
बार बार भूकंप के झटके एक बड़े खतरे का संकेत तो नहीं?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वर्ष 2020 में दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्रों में भूकंप के कुल 51 झटके महसूस किए गए थे। ये झटके बेशक से हल्के हो सकते हैं लेकिन ये एक बड़े खतरे का संकेत हैं। इन्हीं सब के बीच एक सवाल बन रहा हैं कि दिल्ली एनसीआर में बार-बार भूकंप आने की असल वजह क्या है? आखिर दिल्ली में जमीन के नीचे क्या हो रहा है, यह कहीं बड़े भूकंप की आहट तो नहीं? दरअसल इसके कई कारण हैं। उदाहरण के लिए, राजधानी दिल्ली का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा अनधिकृत है जबकि लगभग 20 प्रतिशत बहुत पुराना और जीर्ण-शीर्ण निर्माण है।
दिल्ली की धरती के नीचे क्या हो रहा है?
ताजनगरी दिल्ली की बात करें तो मुश्किल से 4% निर्माण ऐसे हैं जो भूकंपरोधी साबित होते हैं। राजधानी दिल्ली की बेतहाशा बढ़ती आबादी में इस भयानक खतरे को लेकर जागरुकता की भारी कमी है। भूकंप के जोखिम के हिसाब से भारत को चार जोन में बांटने का एक और बड़ा कारण यह है कि टेक्टोनिक प्लेट के मिलने वाली जगह को फॉल्ट लाइन कहते हैं। बड़े भूकंप केवल फॉल्ट लाइन के साथ ही आते हैं। दिल्ली एनसीआर में भूकंप के झटके जमीन से तनाव ऊर्जा के निकलने के कारण हैं। दिल्ली-एनसीआर के अंतर्गत 100 से अधिक लंबे और गहरे फॉल्ट हैं। इनमें से कुछ दिल्ली-हरिद्वार रिज, दिल्ली-सरगोधा रिज और ग्रेट बाउंड्री फॉल्ट पर हैं।