भारत पुरुष प्रधान देश होने के बाद भी आज के समय में बहुत सी महिलाएं राज कर रही है। लेकिन आपको यह सुनकर थोड़ी हैरानी होगी कि पुराने समय में भी एक लड़की दिल्ली की गद्दी पर राज कर चुकी है।
जी हां आप इतिहास के पन्नों को पलट के देख लीजे,तो आपको पता चलेगा कि दिल्ली की गद्दी पर एक लड़की भी बैठ चुकी है। जब यह लड़की दिल्ली की गद्दी पर बैठी थी तो,पूरी दुनिया चौंक गई थीदरअसल यह लड़की और कोई नही इल्तुतमिश की बेटी रजिया थी।जिनको दिल्ली पर राज करने के लिए गद्दी पर बिठाया गया था।
यहीं वह समय था जब पहली बार 1180 में दिल्ली का जिक्र हुआ था। बता दें कि उस समय राजा पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली इस पर विजय प्राप्त की थी। जिसके बाद राजा पृथ्वीराज तृतीय ने यहां तोमर राजा – अनंगपाल के बनवाए लालकोट को किला राय पिथौरा में बदल दिया था। जोकि दिल्ली का पहला शहर माना जाता है।
जानकारी के लिए बता दें कि पृथ्वीराज, अजमेर और दिल्ली के बीच के क्षेत्र पर शासन करते थे। वह राजा अपनी बहादुरी के लिए जाने जाते थे। उन्होंने अफगानिस्तान के गौर से आए हमलावर मोहम्मद गौरी को बुरी तरह हराया था। लेकीन 1192 में हुए तराइन के युद्ध में गौरी को आखिरकार जीत मिल गई।
जिसके बाद पृथ्वीराज वीरगति को प्राप्त हुए। गौरी की जीत के बाद शहाबुद्दीन गौरी ने हिंदुस्तान में मिली जीत को संभालने की जिम्मेदारी अपने विश्वासपात्र गुलाम सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंपी थी। जिसने 1206 में दिल्ली सल्तनत की स्थापना की। यह वहीं है जिन्होंने कुतुब मीनार का निर्माण और कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद भी बनवाई थी। इसके अलावा उन्होंने कुतुब महरौली बसाया था, जिसे दिल्ली का दूसरा शहर कहा जाता है।
लेकिन इसके निर्माण के चार साल बाद ही उनकी घोड़े से गिरकर 1210 में मौत हो गई थी। उनकी मौत के बाद दिल्ली के अगले सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक के दामाद इल्तुतमिश बने। जिन्होंने दिल्ली पर 26 साल राज किया था। इल्तुतमिश अपने बेटों का नालायक समझता था, वहीं उन्हें अपनी बेटी रजिया पर पूरा भरोसा था। इस लिए इल्तुतमिश ने अपना पूरा साम्राज्य बेटे की जगह अपनी बेटी को सौंप देने का निर्णय लिया।
यह भारत के इतिहास में पहली बार हुआ था,कोई महिला इतने बड़े साम्राज्य की कमान संभालने जा रही थी। जब इल्तुतमिश की मौत हुई तो उनकी बेटी ने दिल्ली की कमान संभाली। इल्तुतमिश की ख्वाहिश के मुताबिक, उनकी बेटी रजिया ने महिलाओं के कपड़े पहनना छोड़ दिया, जिसके बाद चोगा-टोपी पहना और हाथी पर सवार हो गई। इस शुभ घड़ी पर दिल्ली झूम उठी थी।
रजिया सुल्तान में वो सभी गुण थे, जो उस वक्त के सुल्तानों में जरूरी माने जाते थे। बता दें कि उन्होंने दिल्ली पर साढ़े तीन तक साल राज किया था। लेकिन तुर्क सरदारों के मुकाबले गैरतुर्क और हिंदुस्तानी सामंतों की एक वफादार टोली तैयार करने की कोशिश उन पर भारी पड़ी थी । तुर्क अमीरों ने खुली बगावत की, जिसमें उनकी जान चली गई।