Delhi News: सिर्फ जंतर मंतर पर ही क्यों होते है अनशन? क्या है इतिहास जानि

हालांकि राष्ट्रीय राजधानी के मध्य में स्थित जंतर मंतर अपनी सुंदरता और आसपास की हरियाली के लिए पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है, परंतु यह प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति का एक उदाहरण भी है। हालांकि आज की पीढ़ी के बीच जंतर मंतर की पहचान यहां हुए दर्जनों प्रदर्शनों की वजह से है। जंतर मंतर कई ऐसे प्रदर्शनों का गवाह रहा है जिसने देश की सत्ता और शासन को झुकने पर मजबूर कर दिया, किंतु क्या आप जानते हैं कि ज्यादातर लोग अपने विरोध प्रदर्शन के लिए जंतर मंतर को ही क्यों चुनते हैं, कैसे एक ऐतिहासिक धरोहर लोकतंत्र की आवाज बन गई, अगर नहीं तो आज हम आपको जंतर मंतर पर हुए विरोध प्रदर्शनों के इतिहास के बारे में बताएंगे। 

 

पहलवानों का प्रदर्शन

बता दें, ओलंपिक में देश के लिए पदक जीतने वाले पहलवान दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं और डब्ल्यूएफआई प्रमुख के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग कर रहे हैं। डब्ल्यूएफआई और अन्य कोचों पर महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। वहीं पहलवानों की अर्जी पर सुनवाई करते हुए मंगलवार 25 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर पुलिस से जवाब मांगा है। अब मामले की सुनवाई शुक्रवार 28 अप्रैल को होगी। वहीं इससे पूर्व पहलवानों ने जनवरी में डब्ल्यूएफआई प्रमुख बृजभूषण के खिलाफ प्रदर्शन किया था। तब सरकार के आश्वासन पर उन्होंने अपना धरना समाप्त कर दिया था, परंतु जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो वे फिर धरने पर बैठ गए।

 

जंतर मंतर पर पहला विरोध कब हुआ था?

बताते चले कि जंतर मंतर के देश के सबसे बड़े विरोध स्थल के रूप में उभरने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। संसद भवन से सटे होने के कारण यहां हर समय धरना-प्रदर्शन चलता रहता है, वहीं कुछ लोग अपनी मांगों को लेकर वर्षों से वहां धरना दे रहे हैं। जंतर मंतर पर पहला विरोध 1993 में DUSU अध्यक्ष आशीष सूद ने केंद्र सरकार के एक आदेश के बाद किया था। तब से यह हजारों छोटे-बड़े प्रदर्शनों का साक्षी रहा है।

 

अन्ना हजारे आंदोलन

गौरतलब हैं कि अपने प्रदर्शन से देश की सत्ता की जड़ों को हिला देने वाले अन्ना हजारे ने अप्रैल 2011 में यहां से अपना आंदोलन शुरू किया था। लोकपाल बिल लाने और देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए महाराष्ट्र के समाजसेवी हजारे ने यहां से आंदोलन शुरू किया था और पूरा देश गवाह है। क्या हुआ उसके बाद? अन्ना हजारे के इस आंदोलन से देश को कई नेता मिले और इस आंदोलन से कई नए समाजसेवी भी पैदा हुए। 2013 में, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के नेतृत्व में, उन्होंने नर्मदा बचाओ आंदोलन के समर्थन में प्रदर्शन किया। इसके बाद साल 2017 में तमिलनाडु के किसानों ने सूखा राहत पैकेज की मांग को लेकर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। किसानों ने इस प्रदर्शन के जरिए केंद्र सरकार से राहत के लिए मोटी रकम की मांग करी थी।