दुनिया में कई तरह की घटना घटती रहती हैं। जाहिर है कि जमीन धंसने लगी और जानकारों का मानना है कि कई अन्य शहरों का भी यही हाल हो सकता है, परंतु इसी बीच पानी की प्यासी दिल्ली की एक बड़ी बस्ती ने न सिर्फ जमीन को धंसने से रोक दिया। भूजल स्तर में भी सुधार हुआ है। सुधा सिन्हा और उनके परिवार ने भविष्य की योजना बनाते हुए 1998 में दिल्ली के द्वारका इलाके में बसने का फैसला किया। 54 साल की सुधा और उनके संयुक्त परिवार के इस फैसले के पीछे दो बड़े कारण थे। एक तो यह कि द्वारका दिल्ली एयरपोर्ट के करीब है और दूसरा यहां के प्लान में हरियाली पर काफी फोकस किया गया था।
आबादी से बढ़ रहा पानी का संकट
बता दे, द्वारका की तर्ज पर एक आधुनिक शहर की स्थापना से पहले, अधिकांश क्षेत्र ‘पप्पनकलां’ के नाम से जाना जाता था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार, जिस क्षेत्र में अब द्वारका स्थित है, वहां की खुदाई से पता चलता है कि दिल्ली के लोधी शासकों के समय में ‘लोहरहेरी’ नाम का एक गाँव था। हालाँकि, क्षेत्र में बढ़ती आबादी के कारण पानी की आवश्यकता बढ़ती रही और पिछले 50 वर्षों में, यहाँ हजारों बोरवेल डाले गए, जिनमें से कुछ में 60 मीटर की खुदाई के बाद पानी निकला। सुधा सिन्हा के अपार्टमेंट में रहने वाले करीब चार दर्जन परिवार भी बोरवेल से निकाले गए पानी पर निर्भर थे।
द्वारका एक साल में 3.5 सेंटीमीटर नीचे धंस गई
बताते चले कि वर्ष 2004 तक सुधा सिन्हा और उनके जैसे द्वारका में रहने वाले कई लोग अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरने लगे। बस एक ही मांग थी, जैसा कि पूरी दिल्ली में होता है, दिल्ली सरकार यहां भी साफ पानी की आपूर्ति शुरू करे। धरना, प्रदर्शन और यहां तक कि चुनाव बहिष्कार की मांग भी हुई, लेकिन इस बीच एक बड़ी चिंता भी थी, जिसे अब तक दूर नहीं किया जा सका है। सरकारी रिपोर्ट्स इस ओर इशारा कर रही थीं कि दिल्ली में जलस्तर तेजी से घट रहा है और इसी लिस्ट में द्वारका भी शामिल है।